हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,राजा महमूदाबाद के निधन की ख़बर से जहां सबसे ज़्यादा उनके परिवार वालों को दुख पहुंचा है, वहां उनके पैतृक क्षेत्र से लेकर पूरे उत्तर प्रदेश और यहां तक कि भारत समेत दुनिया के कई देशों में मौजूद उनके चाहने वालों और साथियों में शोक की लहर दौड़ गई है।
मोहम्मद अमीर मोहम्मद ख़ान सुलमान मियां जो राजा महमूदाबाद के नाम से मशहूर थे, उनकी पहचान एक विद्वान राजा के तौर पर थी। बता दें कि महमूदाबाद एस्टेट की स्थापना 1677 में राजा महमूद ख़ान ने की थी। जिस विरासत को मोहम्मद अमीर मोहम्मद ख़ान ने बड़ी ही ज़िम्मेदारी से संभालकर रखा।
उनके निधन पर विद्वानों में सबसे ज़्यादा शोक की लहर देखी जा रही है। लोगों का मानना है कि उनके निधन से एक पूरी शिक्षा का मज़बूत क़िला ढह गया है। वे लोग जो उन्हें क़रीब से जानते हैं, उनका मानना है कि एक ऐसा व्यक्तित्व,जिसमें कितने ही रंग भरे हुए थे,
जिनमें ज़िन्दगी की कितनी ही तस्वीरें झलकती थीं, जो बोलते थे तो लगता था,कानों में कोई अलग अलग ख़ुशबू का रस घोल रहा हो,वह एक वास्तविक विद्वान राजा थे। जिनमें राजा का तेज भी था और ज्ञान का समुंद्र भी।
राजा महमूदाबाद ने अपने अथक प्रयासों और संघर्षों के दम पर अपनी संस्कृति और परंपरा जीवित रखा। ग़रीबों के लिए हमेशा अपने महलों के दरवाज़ों को खोले रखा। वह हमेशा ज़रूरतमंदों के लिए खड़े रहते थे। वे मानवता की मिसाल थे, उनमें समानता और सबके अधिकारों की समझ थी।
वह एक ऐसे राजा थे जो केवल नाम के राजा नहीं थे, बल्कि लोगों को दिलों पर भी राज करते थे। यही कारण है कि उनके निधन पर आंखों के साथ-साथ आम लोगों का दिल भी रो रहा है।
इस समय उनके पैतृक आवास पर भारी संख्या में लोगों का तांता लगा हुआ है, जो उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे हैं। देश और दुनिया से बड़ी-बड़ी हस्तियां उनके परिवार वालों के नाम शोक संदेश भेज रही हैं। राजा महमूदाबाद की सबसे बड़ी विशेषताओं में से एक यह थी कि वह पैग़म्बरे इस्लाम (स) के प्राण प्रिय नवासे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से काफ़ी श्रद्धा रखते थे और हर वर्ष मोहर्रम में कर्बला वालों की याद में विशेष शोक सभाओं का आयोजन करते थे, जिनमें आठ रबिउल अव्वल में होने वाला कार्यक्रम विश्व प्रसिद्ध था।